पौराणिक लोक कथा - दरबार रोशनी ग्राउंड
इस दरबार के साथ बहुत सारी लोक कथायें भी जुडी हुई है जैसे :-
एक बार का वाकया है की इसी दरबार पर शेख अब्दुल कादिर जिलानी जी का रौशनी मेला चल रहा था | मेला अपने पुरे जोबन पर था और हज़ारों की गिनती में श्रद्धालु मेले में मोजूद थे और अपने पीर साहिब का मेला मना रहे थे दुआ - बंदगी कर रहे थे | उस वक़्त हिन्दुस्थान में अंग्रेजों की हकूमत थी और अंग्रेज फोर्स का कोई बहुत बड़ा अफसर अपने बीवी - बच्चो यानी परिवार के साथ लुधिआना शहर आया हुआ था | उनका लुधिआना का हेड - क्वार्टर किला में था ( दरेसी ग्राउंड के सामने) जो आज किला मोहल्ला के नाम से जाना जाता है | वो अंग्रेज अफसर अपने लाम - लश्कर के साथ हेड - क्वार्टर जा रहा था |
जब वो रौशनी ग्राउंड के सामने से गुजर रहा था तो उसने इतने ज्यादा लोगों का इकठ देख कर अपने जूनियर / छोटे अफसर से पूछा की यहाँ क्या हो रहा है तो उस जूनियर / छोटे अफसर ने कहा जनाब यहाँ पर रौशनी का मेला ल गा हुआ है और लोग अपनी दुआ - बंदगी कर रहे है | उस अंग्रेज अफसर को शक हुआ की कहीं कोई क्रांतिकारी रैली यां अंग्रेज सरकार के खिलाफ कोई गतिविधि तो नहीं चल रही, यही सोच कर वो अपने पुरे परिवार और फोर्स के साथ मेले में आ गया | उस वक़्त मलंग लोगों ने सरकार शेख अब्दुल कादिर जिलानी जी का धुना त्यार किया हुआ था और जल रहा था और मलंग लोग धुना अपने नंगे पैरों से बुझाने की तयारी कर रहे थे | उस बड़े अंग्रेज अफसर ने मलंगों से पूछा की ये क्या कर रहे हो तो उन्होंने जवाब दिया की जनाब हम अपने पीर साहिब का धुना जला कर फिर नंगे पैरों से भुझा कर उनका आशीर्वाद ले रहे हैं | वो अंग्रेज अफसर हंस पड़ा और बोला की इतनी थोड़ी सी आग जला कर और उसे बुझाना कोई बड़ी बात नहीं | आज हम भी तुम्हारे पीर की ताक़त देखना चाहेंगे, इस धुनें में आग हम लगाएंगे और तुम लोग उसे भुझा कर दिखाओ तो माने |
अहंकार में आये उस अंग्रेज अफसर ने बहुत बड़ी जगह पर धुना जला दिया और उस में लोहे के टुकड़े, कांच और कांच से बने बर्तन और बहुत सारी सुखी लकड़े फिकवा दी और धुना जला दिया और कहा की अब इसे भुझा के दिखाओ | आग की लपटे 10 - 10 फुट ऊपर उठ रही थीं, इतनी आग देख कर मलंग डर गये और सोचने लगे की इतनी भयंकर आग में कैसे जाया जाये और वहां पर मौजूद बाकि सारी संगत अपने पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी जी के आगे रो - रो कर फरियाद करने लगी |
पिराने - पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी जी कभी भी अपने मुरीदों और अपने मानने वालों की बेड़ी डूबने नहीं देते |
आज का (जजों होशिअरपुर दोआबा ) उस वक़्त वहां पर सरकार शेख अब्दुल कादिर जिलानी जी के मुरीद सरकार जीजू शाह जी भक्ति में लीन थे उन्हें आकाशवाणी हुई की जीजू शाह जी आज फ़क़ीरी खतरे में है लोग हमारी अजमाइश कर रहे हैं | आप उठो और लुधिआना शहर में रौशनी का मेला चल रहा है और आप वहां पहुंचो | सरकार जीजू शाह जी उसी वक़्त उठे और लुधिआना की तरफ भागने लगे, जंगल में से उन्हों ने एक शेर और एक सांप पकड़ा, शेर की उन्हों ने सवारी की और सांप को चाबुक के लिए इस्तेमाल किया, और पिराने - पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी की रहमत से कुछ ही पलों में सरकार जीजू शाह जी मेले में पहुँच गए |
जिस वक़्त सरकार जीजू शाह जी मेले में पहुंचे तो सारी संगत डर के मारे एक तरफ खड़ी थी और सरकार शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी को रो - रो कर याद कर रही थी | सरकार जीजू शाह जी ने आते ही अली का नारा लगाया और अली - अली करते धुनें में कूद पड़े और धुना भुझाने लगे | उनको धुना भुझाते देख बाकी सभी मलंग लोग भी अली - अली करते धुनें में कूद पड़े और धुना भुझाने लगे और बाकी सारी संगत अपने पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी की जय - जय कार करने लगी और जैकारे लगाने लगी |
ये सारा नज़ारा वहां पर मौजूद अंग्रेज अफसर उस का परिवार और सारी अंग्रेज पुलिस भी देख रही थी | तभी अचानक उस बड़े अंग्रेज अफसर की पत्नी उठी और अली-अली करती धुनें में कूद पड़ी और बाकि मलंग लोगों के साथ मिल कर सरकार का धुना भुझाने लगी , उसे आग में जाते देख बड़े अंग्रेज अफसर ने कहा तू ये सब क्या कर रही है तो उसकी पत्नी ने पंजाबी में उतर दिया के मैं भी पिराने - पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी की मलंग हूँ , इतना सुनते ही अंग्रेज अफसर ने कहा की तुम तो पहली बार हिन्दुस्थान आई हो तो फिर यह भाषा तुमने कब और कहाँ सीखी | वो अंग्रेज अफसर मलंग लोगों से मिन्नते करने लगा की कृपया मेरी पत्नी को धुनें से बाहर निकालो और अपनी पत्नी को आवाजे लगाने लगा लेकिन वो उसकी एक बात का भी जवाब नहीं दे रही थी | इतनी देर में अंग्रेजों का लगाया धुना मलंग लोगों ने शांत / भुझा दिया और वो सारे धुनें से बहार आ गए लेकिन उस अंग्रेज अफसर की पत्नी धुनें में से बाहर नहीं आ रही थी , वो सब की मिन्नते करने लगा की इसे बाहर निकालो और इसे ठीक करो, उसने अपनी पत्नी को फिर आवाज लगाई थोड़ी देर बाद वो अंग्रेज औरत बोली की मैं तेरी पत्नी नहीं हूँ मैं पिराने - पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी की मलंग हूँ और तुम लोग हमारी अजमाइश कर रहे थे ठीक से देख, हमने तेरा जलाया धुना भुझा दिया | धुना शांत ही चूका था संगत अपने पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी की जय - जैकार कर रही थे |
थोड़े समय के बाद वो अंग्रेज औरत बहुत ही गुस्से में बोली तुम लोगों ने हमारी अजमाइश की हमने तो अजमाइश पूरी करदी, सुनों तुम लोगों ने इस देश पर 1100 साल और राज करना था जाओ हमने 1000 साल काट दिए 100 साल के बाद तुम लोगों पर ऐसा क़हर बरसेगा की तुम लोग खुद उजड़ जाओगे और हिन्दुस्थान से भी तुम लोग उजड़ कर जाओगे , इतना कह कर वो अंग्रेज औरत शांत हो गई और धुनें से बाहर आ गई |
निशानी के रूप में यह धुना आज भी दरबार पर मौजूद है और सुबह - शाम प्रज्वलित किया जाता है | संगत इस धुनें पर माथा टेकती है दुआ - सलाम करती है और पिराने - पीर शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी जी का आशीर्वाद प्राप्त कर अपना जीवन सफल बना रही है |
यह सारा वाकया आप सिंगर बलविंदर मत्तेवाडिया द्वारा गाई क़्वाली " अली नू याद करो " जो की T.P.M. कंपनी द्वारा रिलीज़ कैसेट "गोंसपाक पीर मेरा" में दर्ज़ है और आप इस क़्वाली को यूट्यूब (इंटरनेट) पर भी सुन और देख सकते हैं जी |