Miracles of Ghause Azam Dastgir

(1) गोया आसमान ज़मीन पर .....

सरकार गोंसे आज़म फरमाते हैं :-
"इन्ना यदी अल्ला मुरीदी क्सस्मई अलल अर्ज़"
बेशक मेरा हाथ मेरा पंजा मेरे मुरीद के ऊपर इस तरह सायाफगन है जैसे कि आसमान जमीं के ऊपर ।
दूसरी जगह फरमाते हैं :-
"इल्लम यकुन मुरीदी जैय्यदन फ फअना जैय्युदिन"
अगर मेरा मुरीद ताकतवर नहीं तो कोई बात नहीं मैं तो उस का पीर ताकत वाला हूँ ।
दूसरी जगह आप इरशाद फरमाते हैं
"अगर मेरा मुरीद मेरा नाम लेवा मशरिक में हो और मैं मगरिब में हूँ और उसका सत्र खुल जाये तो मैं उसकी सत्र पोशी अपने ही मकाम से बैठे - बैठे कर दूंगा और ता क़यामत मेरे सिलसिले वाले अगर ठोकर खा कर गिरने लगेंगे तो मैं उन्हें संभालता रहूँगा और सहारा देता रहूंगा ।"

(2) या ग़ौसे आजम दस्तगीर .....

एक जवान लड़की जो पीर गौसे -ए-आज़म शेख़ अब्दुल कादिर जिलानी जी की अनुयायी था और सीलोन में रहती थी । एक दिन वह अकेली सुनसान रास्ते पर जा रही थी तो एक आदमी ने उस लड़की को बदनाम करने के लिए उस पर हमला कर दिया । वह डर कर भागी और चिल्लाने लगी, "हे मेरे पीर गौसे -ए-आज़म मुझे बचाओ!" उस वक्त पीर गौसे -ए-आज़म बगदाद में स्नान कर रहे थे । लोगों ने उस आदमी को रोकने की कोशिश की पर सब बेकार । उसी समय एक चमत्कार हुआ, जो लड़की डर कर भाग रही थी, वह एक दम से रुकी और उस लड़की ने लकड़ी से बना जूता अपने पैर से उतार कर उस आदमी पर दे मारा, तो सब ने क्या देखा की वो फेंका हुआ जूता जमीन पर गिरने की बजाये उस आदमी के सिर पर बार - बार और जोर - जोर से लगने लगा जैसे कोई खुद उसके सिर पर वो जूता मार रहा हो, जूतों की मार से उस आदमी की वहीँ पर मौत हो गई । यही कारण है की वह जूता आज भी एक अवशेष के रूप में सीलोन में रखा हुआ है।

(3) थोड़ी सी गंदुम का पांच साल तक ख़त्म न होना.....

शैख़ अबुल अब्बास बयान करते हैं के एक मरतबा बगदाद की कहैत साली के दौरान मैंने हुज़ूर गौसे आज़म से तंगदस्ती और फाके की शिकायत की तो आप ने मुझे तक़रीबन दस सेर गंदुम इनायत फरमाइए और फ़रमाया के इसे ले जाओ और एक तरफ से निकालकर इस्तेमाल कर लिया करो लेकिन इसे वज़न न करना. चुनांचे इस गंदुम को हम तमाम घर वाले पांच साल तक खाते रहे .एक रोज़ मेरी अहलिया ने गंदुम का वज़न किया तो मालूम हुवा की जितना पहले रोज़ था अब भी उतना ही है .उस के बाद ये गंदुम सात रोज़ में ख़त्म हो गया ।

(4) चोर को क़ुतुब बनाया.....

रिवायत है के हुज़ूर गौसे आज़म जब मदीना मुनव्वर की हाज़री से वापस बगदाद शरीफ तशरीफ़ ला रहे थे तो एक चोर रास्ते में खड़ा किसी मुसाफिर का इंतज़ार कर रहा था ,के उसे लुटे | आप उस के क़रीब पहुंचे तो फ़रमाया तू कौन है उस ने कहा में बद्वि हूँ .आप ने फ़रमाया में अब्दुल क़ादिर हूँ, आप का नाम सुनते ही वो बद्वि बे इख़्तियार आप के क़दमों पर गिर पड़ा और उस की ज़बान पर सय्यिद या अब्दुल क़ादिर शै अल लिल्लाह जारी हो गया .आपको उस की हालात पर रहम आया और आपने एक निगाह में इस को वासिल बिल्लाह करदिया और क़ुत्बिय्त का मरतबा इनायत फ़रमाया ।

(5) मसजलीस ए वाज़ से बारिश का मौक़ूफ़ होना.....

रिवायत है के एक रोज़ मूसलाधार बारिश हो रही थी और हुज़ूर गौसे आज़म वाज़ फरमा रहे थे बाज़ लोग बारिश के सबब जाने लगे .तो आप ने आसमान की तरफ देख कर कहा ए खुदावंद मैं लोगों को जमा करता हूँ और तू लोगों को बिखेरता है .फिर बारिश खुद के हुक्म से मजलिस के ऊपर से बंद हो गयी और मदरसे के बाहर बदस्तूर होती रही और मजलिस पर एक क़तर भी न गिरता था ।

"हुवा मौक़ूफ़ फ़ौरन ही बरसाना अहले मजलिस पर
जो पाया अब्र-ए-बारां ने इशारा गौसे आज़म का"

(6) मुर्दे को ज़िंदा करना और ये के आप का नाम इसमें आज़म है .....

रिवायत है के एक लड़का दरिया में ग़र्क़ हो गया, उस की वालिदा हुज़ूर गौसे आज़म की खिदमाते अक़दस में हाज़िर हुई और अर्ज़ करने लगी के हुज़ूर मुझे यक़ीन-ए-कामिल है के आप चाहें तो मेरे लड़के को ज़िंदा कर सकते हैं, बारह करम मेरी दरख्वास्त क़ुबूल फ़रमाइये. आप ने फ़रमाया घर लौट जा अपने लड़के को पा लेगी. वो घर गयी मगर लड़का न पाया,दूसरी मरतबा आकर इल्तेजा की .आप ने इसी तरह फ़रमाया घर लौट जा अपने लड़के को पा लेगी,वो घर गयी मगर लड़का न मिला .तीसरी बार वो हाज़िर हुई और रोकर फ़रियाद करने लगी हुज़ूर ने फ़रमाया,घर जा अब ज़रूर अपने लड़के को पा लेगी. वो घर गयी तो लड़का मौजूद था .हुज़ूर गौसे आज़म अलैहिर रहमः ने मक़ाम-ए-महबूबियत में कहा के ए परवरदिगार ,तूने मुझे इस औरत के सामने दो बार शर्मिंदा क्यों किया ? जवाब मिला पहली बार जब तुम ने कहा तो मलिका ने इस लड़के के अज्ज़ा -ए-मुतफर्रिक़ इकट्ठे किया और दूसरी मरतबा मैंने उस को ज़िंदा किया और तीसरी मरतबा उस को घर पहुंच दिया .अर्ज़ किया के "ए परवरदिगार ,क़यामत के रोज़ एक आन में बे शुमार अजसाम को दोबारा कर के इकठ्ठा कर देगा जब के एक लड़के को तीन रोज़ लगा दिए ,इस मैं क्या हिकमत थी , जवाब मिला के हम तुम्हारी दिल शिकनी का बदला देते हैं जो माँगना है मांग लो .हुज़ूर गौसे आज़म ने अर्ज़ किया ए परवरदिगार,तू जो चाहे अत कर, अल्लाह तआला ने फ़रमाया मैंने तुम्हारे नाम को अपने नाम के साथ किया ,जिस ने तुम्हारा नाम लिया तासीर और बरकत व सवाब में गोया मेरा नाम लिया ।

(7) उसका नसीब बुलंद है .....

एक मुकाम पर सरकार गौसे आज़म इरशाद फरमाते हैं की उस शख्स का नसीब बहुत बुलंद है जो
मेरे दरबार पर आ गया, जिसने भी मेरा सजदा किया यान फिर मेरे चाहने वाले के दर्शन किये |

(8) मछलियों ने कदम बोसी की .....

एक दफा सरकार गौसे आज़म दस्तगीर अहले बग़दाद की नज़रों से गायब हो गए । लोगों ने तलाश करना शुरू कर दिया । मालूम यह हुआ कि दरिया-ए-दजला की जानिब तशरीफ़ ले गए हैं वहां पहुँच कर लोगों ने देखा कि आप पानी पर मशय फ़रमा रहे हैं यानी चल रहे है और दरिया-ए-दजला की सारी मछलियां निकल निकल कर बोसा ले रही है । फिर देखते ही देखते एक बेहतरीन किसम का हसीं मुसल्ला फ़ज़ा में मुअल्लक़ होकर बिछ गया और उसके ऊपर दो सतरे लिखी हैं : पहली सतर में

" अल्लाह इन्ना ओलिया अल्लाहे ला ख़ौफुन अलेहिम वलाहुम यहज़नून "। और दूसरी सतर में
" सल्लामुन अलेकुम अहलल बैति इन्हू हमीदुम मजीद लिखा है "।

इतने में बहुत से लोग इस मुसल्ले के करीब जमा हो गये । ज़ोहूर का वक़्त था तकबीर कही गई । आपने इमामत फरमाई, जब तकबीर कहते तो हामिलाने अर्श आप के साथ तकबीर कहते और जब तसबीह पढ़ते तो सातों आसमान के फरिश्ते आप के साथ तसबीह पढ़ते थे और समि अल्लाहु लिमन हामिहद कहते तो आपके लबों से निकल कर सब्ज रंग का नूर आसमान की तरफ जाता । जब नमाज़ से फारिग हुये तो ये दुआ फरमाई कि ऐ रब्बे कदीर तेरी बारगाह में तेरे मेहबूब के वास्ते दुआ करता हूँ कि तू मेरे मुरीदों और मुरीदों के मुरीदों की रूहों को जो मेरी तरफ मनसूब हों बगैर तौबा के कब्ज़ न फरमाना । सहूल बिन अब्दुल्लाह तश्तरी रहमतुल्लाहे तआला अलैह फरमाते हैं कि आपकी इस दुआ पर हम सभों ने फरिश्तों की एक बड़ी जमाअत को आमीन कहते सुना । दुआ के बाद एक निदा-ऐ-गैबी सुनाई दी । "अबशिर फ़इन्नी कदिस तहिन्तु लकां ऐ अब्दुल कादिर खुशखबरी हो तुम्हारे लिए यह कि मैंने तुम्हारी दुआ कबूल करली ।

शेखबक़ा बिन बुतुआ रहमतुल्लाहे तआला अलैह फरमाते हैं कि किसी शख्श ने सरकार गौसे आज़म से पूछा कि आपके मुरीदों में परहेजगार और गुनाहगार दोनों होंगे । तो आपने अपने मुरीदों के लिए कितना तस्सली बख्श जवाब इनायत फ़रमाया, हाँ मगर परहेजगार मेरे लिए और मैं गुनाहगारों के लिए ।

(9) वह मेरा मुरीद है .....

सरकार गोंसे आज़म जी की खिदमत में एक शख्स ने अर्ज़ किया कि अगर कोई शख्स अपने को हज़ूर का मुरीद बतलाता हो और आपकी गुलामी का इजहार करता हो और दर हक़ीक़त उसने आपके दस्ते मुबारक पर शरफे बैअत न हासिल किया हो और आपके दरबारे गुहरबार से उसे खिरका न मिला हो तो क्या वह हुज़ूर के मुरीदों में शुमार किआ जायेगा ?

इरशाद फ़रमाया, ताकयामत जो शख्स मेरे सिलसिले में दाखिल होगा और अपने को मेरा मुरीद कहेगा बेशक़ वो मेरा मुरीद है और मेरे मुरीदों में शामिल होगा । हमेशा मैं उसकी नुसरत व हिमायत और दस्तगीरी करता रहूँगा और वकते आखिर उसे तौबा की तौफीक नसीब होगी | शेख़ अली बिन हैअति रहमतुल्लाहे ताला अलैह अक्सर यह कहा करते थे कि किसी मुरीद का पीर सरकार गौसे आज़म रदिअल्लाहु ताला अन्हु के मुरीद के पीर से अफजल नहीं हो सकता ।